सोनभद्र के सदर विकास खंड के सलखन गांव में स्थित सल्खान जीवाश्म पार्क जो आधिकारिक तौर पर सोनभद्र जीवाश्म पार्क के रूप में जाना जाता है। उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि भारतवर्ष में यह पहला जीवाश्म पार्क माना जाता है। यह पार्क जिले के स्टेट हाईवे 5A से सटा हुआ है। जिसकी मुख्यालय से दूरी करीब 12 किलोमीटर बताई जाती है जीवाश्म पार्क करीब 1500 मिलियन वर्ष पुराने होने का अनुमान है। जिले जीवाश्म पार्क में पाए जाने वाले जीवाश्म शैवाल और स्ट्रोमेटोलाइट प्रकार के जीवाश्म हैं। यह पार्क कैमूर वन्यजीव अभयारण्य से सटे कैमूर रेंज में करीब 25 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है। यह राज्य के वन विभाग के अधिकार क्षेत्र में आता है। वही इतिहास कार यहां पर समुद्र होने का भी दावा करते है। यूपी के सोनभद्र जिले में 150 करोड़ साल का इतिहास समेटे है जिले का यह फॉसिल्स पार्क, कभी यहां लहराती थीं समुंदर की लहरें। जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर वाराणसी शक्तिनगर मार्ग के सलखन गाँव में जहां एक नहीं 150 करोड़ वर्ष पुराने जिवाश्म(फासिल्स) हैं। ये पार्क दुनिया का सबसे बड़ा फासिल्स पार्क है। सलखन गांव में 150 करोड़ साल पहले के जीवाश्म मिले हैं। बताते है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा फासिल्स (जीवाश्म) पार्क है, जो तकरीबन 25 हेक्टेयर में फैला है। यह फासिल्स पार्क अमेरिका के यलो स्टोन पार्क से भी बड़ा बताया जाता है। करोड़ों साल पुराने इस जीवाश्म की खोज सबसे पहले 1933 में जियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया ने की थी। इस अनमोल धरोहर के इतिहास को दुनिया के कई वैज्ञानिक प्रमाणित कर चुके हैं। दुनिया भर में प्राचीनतम सलखन का फासिल्स पार्क ने जिले को अनमोल भू-वैज्ञानिक धरोहर से समृद्ध बनाया है। जीवन के सृजन की शुरुआत के साक्षी बने इन जीवाश्मों ने इस तथ्य पर मुहर लगाई है, जहां 150 करोड़ साल पहले यहां समुद्र की लहरें हिलोरें मारा करती थीं। फासिल्स पार्क में प्राचीनतम जीवाश्मों का भंडार है। यहां सलखन जीवाश्म पार्क में एलगल स्ट्रोमैटोलाइट्स प्रकार के जीवाश्म पाए जाते हैं जो पृथ्वी पर पाए जाने वाले प्राचीनतम जीवाश्मों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस प्रकार के जीवाश्मों का निर्माण आमतौर से नील-हरित शैवाल समूह के सूक्ष्मजीवों द्वारा अवसाद कणों को आपस में जोड़ने के कारण होता है। नील हरित शैवालों की कोशिकाओं के बाहर म्यूसिलेज की चिपचिपी परत होती है, जो अवसाद कणों को आपस में बांधती है। इससे स्ट्रोमैटोलाइट जीवाश्म का निर्माण होता है। नील हरित शैवाल पृथ्वी पर जीवन के विकास के प्रारम्भिक रूप का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके अलावा इतिहासकार दीपक कुमार केशरवानी ने बताया कि यहां के फार्सिल्स पार्क को लेकर कई विदेश के वैज्ञानिकों ने भी प्रमाणिक तौर पर पुष्टि कर चुके है।
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