लखनऊ। हमारे सनातन धर्म में अनेक प्रकार के कार्यों को करने से हानि लाभ का पता चलता है। धर्म शास्त्र की बातों पर गौर करें तो किसी भी मौके पर अगर कोई ऐसा वाक्या घटित हो जाए कि उस घड़ी को शुभ संकेत मानकर उस पल को हमेशा की रीति मान लिया जाता है। कुछ इन्ही पलों में एक पहलू जुड़ा है दशहरे का दिन। जिस दिन अगर नीलकंठ के दर्शन हो जाते हैं तो बहुत ही शुभ माना जाता है। आखिर ऐसा क्यों। क्योंकि नीलकंठ को तो कभी भी देखा जा सकता है। फिर ऐसा क्यों कि आज के दिन ही इसे क्यों शुभ माना जाता है। इसकी जानकारी के लिए बने रहिए हमारे साथ।
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अगर किवदंतियों पर गौर करें तो कहावत भी है कि नीलकंठ तुम नीले रहियो, दूध-भात का भोजन करियो, हमरी बात राम से कहियो’, पृथ्वी लोकोक्ति के अनुसार नीलकंठ पक्षी को भगवान का प्रतिनिधि माना भी गया है। इसलिए दशहरा पर दिन नीलकंठ के दर्शन को अत्यधिक शुभ व भाग्य को जगाने वाला माना गया है। जिसके चलते दशहरे के दिन हर व्यक्ति इसी आस में छत पर जाकर आकाश को निहारता है कि उन्हें नीलकंठ पक्षी के दर्शन हो जाएं। दर्शन मात्र करने से एक वर्ष तक उसका समय सुख पूर्वक कटता है।
दर्शन करने से मिलता है यह लाभ
विजय दशमी पर नीलकंठ के दर्शन होने से घर के धन-धान्य में वृद्धि होती है व फलदायी एवं शुभ कार्य घर में अनवरत् होते रहते हैं। सुबह से लेकर शाम तक किसी भी समय नीलकंठ दिख जाए तो वह देखने वाले के लिए शुभ होता है। कहते है श्रीराम ने इस पक्षी के दर्शन के बाद ही रावण पर विजय प्राप्त की थी। विजय दशमी का पर्व जीत का पर्व है। दशहरे पर नीलकण्ठ के दर्शन की परंपरा बरसों से जुड़ी है। लंका जीत के बाद जब भगवान राम को ब्राह्मण हत्या का पाप लगा था। भगवान राम ने अपने भाई लक्ष्मण के साथ मिलकर भगवान शिव की पूजा अर्चना की एवं ब्राह्मण हत्या के पाप से खूद को मुक्त कराया। तब भगवान शिव नीलकंठ पक्षी के रुप में धरती पर पधारे थे।
जाने क्या है शुभ संकेत
नीलकण्ठ का अर्थ है जिसका गला नीला हो। धर्मशास्त्रों में भगवान शंकर ही नीलकण्ठ है। इस पक्षी को पृथ्वी पर भगवान शिव का प्रतिनिधि व स्वरूप दोनों माना जाता है। नीलकंठ पक्षी भगवान शिव का ही रुप है। भगवान शिव नीलकंठ पक्षी का रूप धारण कर धरती पर विचरण करते हैं। इस प्रकार की मान्यता सदियों से मृत्यु लोक में चली आ रही है।
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