जाने क्यों किया जाता है करवा चौथ का व्रत

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पब्लिक भारत डेस्क: भारतीय हिंदू स्त्रियों के लिए करवा चौथ का व्रत अखंड सुहाग को देने वाला माना जाता है। विवाहित स्त्रियां इस दिन अपने पति की दीर्घायु एवं स्वास्थ्य की मंगल कामना करके भगवान रजनीश को अर्घ अर्पित कर उसे पूर्ण करती हैं। स्त्रियों में इस व्रत के प्रति इतना अधिक श्रद्धा भाव होता है कि वह कई दिन पूर्व से ही इस व्रत की तैयारी प्रारंभ कर देती हैं। यह व्रत कार्तिक कृष्ण की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है। यदि वह दो दिन चंद्रोदय व्यापिनी हो या दोनों ही दिन ना हो तो पूर्व विद्धा लेनी चाहिए। करक चतुर्थी को ही करवा चौथ भी कहा जाता है। वास्तव में करवा चौथ का त्यौहार भारतीय संस्कृति के लिए उस पवित्र बंधन का प्रतीक है जो पति-पत्नी के बीच होता है भारतीय संस्कृति में पति को परमेश्वर की संज्ञा दी गई है। करवा चौथ पति और पत्नी दोनों के लिए नव प्रणय निवेदन और एक दूसरे के प्रति अपार प्रेम त्याग एवं उत्सर्ग की चेतना लेकर आता है। इस दिन स्त्रियां पूर्ण सुहागिन का रूप धारण कर भगवान रजनीश से अपने अखंड सुहाग की प्रार्थना करती हैं। स्त्रियां श्रृंगार करके ईश्वर के समझ दिन भर के व्रत के बाद यह प्रण लेती है कि वह मन वचन एवं कर्म से पति के प्रति समर्पण की भावना रखेंगी। 

इनकी होती है पूजा

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चौथ को केवल चंद्र देवता की ही पूजा नहीं होती बल्कि शिव पार्वती और स्वामी कार्तिकेय को भी पूजा जाता है शिव पार्वती की पूजा का विधान इस हेतु किया गया जाता है कि जिस प्रकार शैलपुत्री पार्वती ने घोर तपस्या करके भगवान शंकर को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया वैसा ही उन्हें भी मिले। वैसे भी गौरी पूजन काकुंवारी कन्याओं और विवाहित स्त्रियों के लिए विशेष महत्व है। 

द्रौपदी ने भी किया था इस व्रत को

इस संदर्भ में एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार पांडवों के वनवास के समय जब अर्जुन तप करके इंद्र नील पर्वत की ओर चले गए तो बहुत दिनों तक उनके वापस न लौटने पर द्रौपदी को चिंता हुई। कृष्ण ने आकर द्रौपदी की चिंता दूर करके करवा चौथ व्रत बताया तथा उसे संबंध में जो कथा शिवजी ने पार्वती जी ने सुनाई थी वह भी सुनाई। 

जाने किसने किया था इस व्रत को

इंद्रप्रस्थ नगरी में देव शर्मा नामक एक विद्वान ब्राह्मण के सात पुत्र तथा एक पुत्री थी जिसका नाम वीरावती था उसका विवाह सुदर्शन नामक एक ब्राह्मण के साथ हुआ था। ब्राह्मण के पुत्र सभी विवाहित थे। एक बार करवा चौथ के व्रत के समय वीरवती की भाभियों ने तो पूर्ण विधि से व्रत किया किंतु वीरावती सारा दिन निर्जल रहकर भूख न सह सकी तथा निहाल होकर बैठ गई। भाइयों की चिंता पर भाभियों ने बताया कि वीरवती भूख से पीड़ित है। करवा चौथ का व्रत चंद्रमा देखकर ही खुलेगी। यह सुनकर भाइयों ने बाहर खेतों में जाकर आग जलाई तथा ऊपर कपड़ा तानकर चंद्रमा जैसा दृश्य बना दिया। फिर जाकर बहन से कहा कि चांद निकल आया है अर्घ दे दो। यह सुनकर वीरवती ने अर्घ देकर खाना खा लिया। नकली चंद्रमा को अर्घ देने से उसका व्रत खंडित हो गया तथा उसका पति अचानक बीमार पड़ गया, वह ठीक ना हो सका। एक बार इंद्र की पत्नी इंद्राणी करवा चौथ का व्रत करने पृथ्वी पर आई इसका पता लगाने पर वीरवती ने जाकर इंद्राणी से प्रार्थना की कि उसके पति ठीक होने का उपाय बताएं। इंद्राणी ने कहा कि तेरे पति की यह दशा तेरी ओर से रखे गए करवा चौथ के व्रत के खंडित हो जाने के कारण हुई है, यदि तू करवा चौथ का व्रत विधि विधान से बिना खंडित किया करेगी तो तेरा पति ठीक हो जाएगा। वीरवती ने करवा चौथ का व्रत पूर्ण विधि से संपन्न किया, फल स्वरुप उसका पति बिल्कुल ठीक हो गया। करवा चौथ का व्रत इस समय से प्रचलित हुआ है जिसे सुहागिन स्त्रियां बड़े ही श्रद्धा भाव से करती है। 

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