सोनभद्र जनपद में आदिवासी बाहुल्य इलाक़े में आदिवासियों के हक पर डाका डालने का आरोप सामने आया है। ओबरा तहसील क्षेत्र की जुगैल ग्राम पंचायत के ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि लेखपाल ने खतौनी देने के नाम पर लाखों रुपये वसूल लिए लेकिन अब तक न खतौनी दी गई और न ही कोई कार्रवाई हुई। पीड़ित आदिवासियों ने इस मामले की शिकायत लेकर डीएम कार्यालय पहुंचकर ज्ञापन सौंपा है। चोपन ब्लॉक की सबसे बड़ी ग्राम पंचायत जुगैल में आदिवासी समुदाय के लोग अपनी समस्याओं को लेकर आज डीएम कार्यालय पहुंचे। ग्रामीणों का आरोप है कि वर्ष 2006 में उन्हें सरकार द्वारा जमीन के पट्टे दिए गए थे, जिनका जय कोड भी जारी हो चुका है। सरकार ने स्पष्ट आदेश दिया था कि इन पट्टाधारकों को खतौनी उपलब्ध कराई जाए, लेकिन इस प्रक्रिया को पूरा करने के नाम पर लेखपाल धर्मेंद्र यादव ने जमकर वसूली की। ग्रामीणों का कहना है कि खतौनी दिलाने के नाम पर प्रति व्यक्ति चार हजार से आठ हजार रुपये तक वसूले गए, लेकिन अब तक किसी को भी खतौनी नहीं मिली। ग्रामीण बताते हैं कि वे कई बार तहसील कार्यालय का चक्कर लगा चुके हैं, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हुई। थक-हार कर अब उन्होंने डीएम सोनभद्र को ज्ञापन सौंपा है। आदिवासियों का कहना है कि यह मामला सिर्फ धन उगाही का नहीं है बल्कि उनके हक और अधिकारों से खिलवाड़ है।

सवाल यह भी उठ रहा है कि प्रदेश का सबसे बड़ा आदिवासी जिला कहे जाने वाले सोनभद्र में जब आदिवासियों के अधिकार ही सुरक्षित नहीं हैं, तो सरकार की योजनाओं और दावों पर कैसे भरोसा किया जाए। ग्रामीणों ने साफ कहा कि जब सरकार हमें जमीन का पट्टा देकर खतौनी देने का आदेश दे चुकी है, तो फिर किसी भी कर्मचारी को पैसे लेने का अधिकार कैसे मिल गया? उन्होंने मांग की है कि संबंधित लेखपाल की उच्च स्तरीय जांच कराई जाए और उस पर कठोर कार्रवाई हो। साथ ही खतौनी जल्द से जल्द जारी की जाए। वहीं इस पूरे मामले पर जब मीडिया ने डीएम सोनभद्र से सवाल करना चाहा तो उन्होंने कोई जवाब देने से इंकार कर दिया और बिना कुछ कहे परिसर से चले गए। डीएम का यह रवैया भी ग्रामीणों के गुस्से को और भड़का गया है। लेखपाल ने हमसे चार-चार, आठ-आठ हजार रुपये लिए, लेकिन अभी तक खतौनी नहीं मिली। अब तक तहसील के चक्कर लगाते रहे, कोई सुनवाई नहीं हुई। हम गरीब लोग हैं, मेहनत मजदूरी करके पैसे दिए। खतौनी अब तक नहीं मिली। सरकार से मांग है कि हमें जल्द से जल्द खतौनी दी जाए और दोषियों पर कार्रवाई हो। डीएम सवाल टालते हुए बिना जवाब दिए निकल गए। तो यह है तस्वीर सोनभद्र की, जहां आदिवासी अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ बुलंद कर रहे हैं। बड़ा सवाल यह है कि क्या जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई होगी, और कब तक आदिवासी अपने हक की खतौनी पाने के लिए दफ्तरों के चक्कर लगाते रहेंगे।
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