सोनभद्र के ओबरा बिल्ली-मारकुंडी खनन हादसे से आज का सबसे बड़ा अपडेट। चार दिन… जी हाँ पूरे 72 घंटे की जान बचाने की जद्दोजहद के बाद, रेस्क्यू ऑपरेशन अब रोक दिया गया है। जिलाधिकारी बी.एन. सिंह ने साफ कहा है “मलबे में अब कोई भी व्यक्ति दबा नहीं है।” यानी जो सात शव मिले, वही अंतिम थे। सभी की पहचान भी पूरी कर ली गई है, लेकिन अब असली सवाल उठ रहा है हादसे की जमीन के नीचे सच कौन दबा रहा था? चार दिनों की जद्दोजहद के बाद भी, जिम्मेदार कौन ये अभी भी धुंध में है। जिला प्रशासन में इस मामले में खनन पट्टा धारक समेत तीन लोगों पर मुकदमा दर्ज कर कार्यवाही में जुट गई है। ओबरा थाना ओबरा थाना क्षेत्र के बिल्ली मारकुंडी की ओर काली रात की वो दर्द से भरी धरती… जिसने अचानक चीखते हुए खुद को फाड़ दिया, और मजदूरों को अपनी चपेट में ले लिया।

जैसे ही पहाड़ टूटा धरती हिली, धूल उठी, और इंसानों की चीखों ने पूरा इलाका दहला दिया और उसी पल शुरू हुई 72 घंटे की जंग जंग मौत से, और जंग उम्मीद से। एनडीआरएफ की टीमें उतरीं, एसडी आर एफ मौके पर पहुँची, ओबरा सीआईएसएफ और अल्ट्राटेक की टीमों ने मशीनें दौड़ा दीं। ना किसी ने नींद देखी, ना किसी ने थकान मानी। चार दिन नहीं, मौत से जंग की तरह बीते। एक-एक करके शव निकाले गए, मिट्टी के नीचे दबी कहानियाँ बाहर आईं और आखिरकार, सातों शव बरामद कर लिए गए। यानी रेस्क्यू बंद, लेकिन सवाल खुले,अब बड़ा सवाल उठ रहा है कि क्या खनन सुरक्षा नियमों को साइड में रखकर काम हो रहा था? क्या माइनिंग कंपनियों ने खतरे की चेतावनी के बाद भी काम बंद नहीं किया? क्या अवैध खनन का खेल मजदूरों की जान ले गया?

चार दिन से जो टीमें जान बचाने में लगी थीं, अब नज़रें पुलिस की कार्रवाई पर टिक गई हैं। अब देखना है सातों की मौत के बाद भी क्या किसी का ज़मीर जागेगा, या फिर ये हादसा भी उसी तरह दबा दिया जाएगा जैसे कई मामले पहले दब चुके हैं। जिलाधिकारी बी.एन. सिंह ने साफ कहा “अब मलबे में किसी और के दबे होने का कोई संकेत नहीं मिला है। इसलिए रेस्क्यू रोक दिया गया है।” यह जानकारी आते ही, पूरे हादसे की तस्वीर स्पष्ट हो गई, लेकिन तस्वीर का दूसरा हिस्सा अभी भी अंधेरे में है। वही पुलिस अधीक्षक अभिषेक वर्मा ने बताया “अभी तक किसी भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। जांच जारी है।”
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