कैसे बनेगा विकसित भारत, यहां पर विकास आज भी पहाड़ों और जंगलों में भटक रहा है

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सोनभद्र(AKD/गिरीश तिवारी)-देश डिजिटल इंडिया से विकसित भारत की ओर बढ़ने के दावे कर रहा है, लेकिन सोनभद्र जिले की सबसे बड़ी ग्राम पंचायत जुगैल की जमीनी हकीकत इन दावों को खोखला साबित करती है। करीब 60 हजार की आबादी और 40 हजार से अधिक मतदाताओं वाली इस ग्राम पंचायत का एक बड़ा हिस्सा आज भी सड़क, बिजली, मोबाइल नेटवर्क और शुद्ध पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। हालात ऐसे हैं कि यहां विकास आज भी पहाड़ों और घने जंगलों के बीच रास्ता तलाश रहा है।जुगैल ग्राम पंचायत के गर्दा टोले की स्थिति सबसे अधिक चिंताजनक बनी हुई है। चारों ओर पहाड़, कच्चे और पथरीले रास्ते तथा घना जंगल है। गांव तक आज तक पक्की सड़क नहीं पहुंच पाई है। नतीजा यह है कि एंबुलेंस आज तक इस टोले में नहीं पहुंच सकी। आपात स्थिति में बीमारों और गर्भवती महिलाओं को खाट पर लादकर 35 से 40 किलोमीटर दूर चोपन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तक ले जाना ग्रामीणों की मजबूरी बन चुकी है। बरसात के दिनों में यह सफर और भी खतरनाक हो जाता है। कई बार मरीज अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं।

नेटवर्क यहां सुविधा नहीं, जीवन-मरण का सवाल
गर्दा टोले में मोबाइल नेटवर्क आज भी बड़ी समस्या बना हुआ है। किसी आपात स्थिति में कॉल लगाने के लिए ग्रामीणों को पहाड़ियों या ऊंचे पेड़ों पर चढ़ना पड़ता है। रात या बारिश के समय यह जान जोखिम में डालने जैसा होता है। ग्रामीणों का कहना है कि कई बार नेटवर्क न मिलने के कारण समय पर पुलिस और एंबुलेंस को सूचना नहीं दी जा सकी, जिससे हालात और बिगड़ गए।

स्वास्थ्य सेवाएं कागजों तक सीमित
गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तो मौजूद है, लेकिन डॉक्टरों की कमी और नेटवर्क की समस्या के कारण वह लगभग निष्क्रिय पड़ा है। ग्रामीणों का आरोप है कि समय पर इलाज न मिलने से कई महिलाओं की जान जा चुकी है। गर्भवती महिलाओं के लिए हालात और भी भयावह हैं। प्रसव के समय पूरा गांव भगवान भरोसे रहता है।

तालाब का दूषित पानी पीने को मजबूर ग्रामीण
गर्दा टोले में शुद्ध पेयजल की कोई स्थायी व्यवस्था नहीं है। महिलाएं तालाब से पानी लाकर उसे छानकर पीने को मजबूर हैं। ग्रामीण महिला उमा बताती हैं कि हर घर नल योजना के तहत घरों में टोटियां जरूर लगाई गईं और शुरुआत में करीब दस दिन पानी भी आया, लेकिन उसके बाद आज तक एक बूंद पानी नसीब नहीं हुआ। दूषित पानी के सेवन से बच्चों और बुजुर्गों में बीमारियां फैल रही हैं। इलाज के लिए 45 किलोमीटर दूर चोपन जाना पड़ता है।

बिजली के खंभे खड़े, गांव अंधेरे में
गांव में बिजली की स्थिति भी बेहद खराब है। कुछ घरों में सोलर प्लेट जरूर लगी हैं, लेकिन अधिकांश परिवार आज भी डीजल की लालटेन के सहारे रात गुजारते हैं। गांव में बिजली के खंभे तो गाड़ दिए गए हैं, लेकिन अब तक तार नहीं खिंचे और न ही घरों तक कनेक्शन पहुंचा।

जर्जर सड़कें, एंबुलेंस और पुलिस की राह बंद
वार्ड सदस्य रघुबीर के अनुसार गांव की सड़कें इतनी बदहाल हैं कि पैदल चलते समय लोग गिरकर घायल हो जाते हैं। जगह-जगह गहरे गड्ढे हैं, पुलियाएं टूट चुकी हैं। सड़क की बदहाली के कारण एंबुलेंस आज तक गांव में नहीं पहुंच सकी। किसी घटना या दुर्घटना के बाद पुलिस भी समय पर मौके पर नहीं पहुंच पाती।

शिक्षा पर सबसे गहरा असर
डिजिटल अंधकार का सबसे बड़ा असर बच्चों की शिक्षा पर पड़ा है। जुगैल में न इंटर कॉलेज है और न ही डिग्री कॉलेज। कक्षा 10 की छात्रा सविता बताती है कि उसे 20 किलोमीटर दूर निजी स्कूल में पढ़ाई करनी पड़ती है, जबकि इंटर कॉलेज 40 किलोमीटर दूर है। आगे पढ़ने की इच्छा होने के बावजूद साधनों और आर्थिक स्थिति के अभाव में उसकी पढ़ाई छूटने का खतरा बना हुआ है।

ग्रामीणों की आवाज, लेकिन समाधान अधूरा
इसी क्षेत्र के रहने वाले जागरूक युवक राहुल पांडेय बताते हैं कि सड़क, बिजली, नेटवर्क, पेयजल और परिवहन जैसी समस्याओं को लेकर ग्रामीण कई बार अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से गुहार लगा चुके हैं। पिछली बार जिलाधिकारी से शिकायत के बाद गांव में बिजली के पोल जरूर गाड़े गए, जिससे ग्रामीणों को उम्मीद जगी है कि देर से ही सही, बिजली गांव तक पहुंचेगी।

अधिकारियों का आश्वासन, जमीन पर इंतजार
मामले को लेकर मुख्य विकास अधिकारी जागृति अवस्थी ने बताया कि उपलब्ध कराई गई जानकारी के आधार पर सभी समस्याओं का शीघ्र निस्तारण कराया जाएगा। शुद्ध पेयजल, सड़क और अन्य आवश्यक सुविधाओं को लेकर विभागीय स्तर पर समन्वय कर कार्य कराया जाएगा, ताकि ग्रामीणों को मूलभूत सुविधाएं मिल सकें।

विकास की रोशनी से अब भी दूर जुगैल
कुल मिलाकर जुगैल ग्राम पंचायत का यह इलाका आज भी विकास की रोशनी से कोसों दूर है। यहां न विकसित भारत की झलक दिखती है और न ही डिजिटल इंडिया की पहुंच। सड़क, बिजली, नेटवर्क और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में ग्रामीण आज भी उस अधिकार का इंतजार कर रहे हैं, जिसे विकास कहा जाता है।

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