अरविन्द दुबे/गिरीश तिवारी
सोनभद्र। जिले की अनोखी धरोहर व पर्यटक स्थल के नाम से विख्यात हो रहा विजयगढ़ किला अपने आप में एक कहानी है। इस किले में तिलस्मी खजाना होने की बात जिले के इतिहासकारो द्वारा हमेशा की जाती है। दुनिया को सबसे अनोखे स्थान पर्यटकों के लिए हमेशा से लुभाते रहे हैं। अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए देश-विदेश के पर्यटक पहुंचते रहते हैं। भले ही वह स्थान सात समंदर पार ही क्यों न हो। इसी खूबसूरती व अनोखेपन को समेटे हुए है जिले का विजयगढ़ दुर्ग, यहां का वैभव कैसा है, दुर्ग का जर्रा-जर्रा आज भी बयां करता है। देखने वाले पर्यटक किले को देखते ही रह जाते है। किले में ढूंढ़ते रह जाते हैं उस समय की चंद्रकांता को जिले देवकी नंदन खत्री ने अपनी रचना चंद्रकांता संतति में उकेरा है। इसके साथ दुर्ग से बह रही वीरगाथा की धाराओं को भी लोग बरबस नहीं भूल पाते। इसी कारण से साल-दर-साल पर्यटनप्रेमी किसी न किसी रास्ते से आते ही रहते हैं। यह विजयगढ़ दुर्ग घनघोर जंगल में चार राज्यों मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड व छत्तीसगढ़ राज्यों के सीमावर्ती जिला सोनभद्र में है। उपन्यास की माने तो यह दुर्ग वीरगाथा, ऐयारों की अनसुनी कहानियों व तिलिस्म के खजाने से भरपूर है। महाभारत काल से लेकर अंग्रेजों की गतिविधियों का साक्षी यह किला कई रहस्य समेटा हुआ है। यहां आस्था है, रहस्य व रोमांच भी भरपूर है। गंगा-जमुनी तहजीब का प्रत्यक्ष प्रमाण यहां देखने को मिलता है। कुल मिलाकर पर्यटन के दृष्टिकोण से यह स्थान जिले का महत्वपूर्ण स्थल है। इसके बाद भी पर्यटन विभाग व जिला प्रशासन की उपेक्षा का दंश झेल रहा है। अगर यहां कुछ व्यवस्थाएं हो जाएं तो यह तिलिस्म के खजाने वाला यह किला जिले का खजाना भरने में उपर्युक्त होगा।
द्वापरयुग से जुड़ा है इस किले का इतिहास
जिले के बीहड़ जंगल में स्थापित हजारों साल पुराने इस दुर्ग का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। किवदंतियों की माने तो कभी यहाँ विजय गिरि के नाम से पहचान रखने वाले इस दुर्ग पर ऋषियों द्वारा तपस्या की जाती थी। कालांतर में यह किला बना। ऐसी मान्यता है कि चंद्रगुप्त मौर्य को जब मगध पर आक्रमण करना था तो उन्होंने अपनी सेना को इस किले पर विश्राम कराया था। यहां से थोड़ी ही दूरी पर मगध पड़ता है, जो बिहार में है। किताबो पर गौर करे तो किले की कहानी राजा चेत सिंह से भी जुड़ी बतायी जाती है। यह किला तब और ज्यादा सुर्खियों में आया जब 90 के दशक में दूरदर्शन पर देवनीनंदन खत्री द्वारा लिखे गये उपन्यास चंद्रकांता संतति पर आधारित सीरियल चला। उस दौर का रानी महल, कचहरी व महल की सुरक्षा के लिए बनी करीब छह फीट चौड़ी वह दीवार आज भी है जिस पर क्रूर सिंह घोड़ा दौड़ाया करता था। इस किले से आस्था भी जुड़ी है। हर साल यहां हिंदुओं व मुस्लिमो का मेला लगता है।
किले की खूबियां सुनकर चौंकते हैं लोग
जिले ही नहीं बल्कि प्रदेश में भी जो लोग उपन्यास व कहानी पढऩे के सौकीन होते हैं वे विजयगढ़ दुर्ग की कहानी से जरूर वाकिफ होते हैं। जो लोग नहीं थे उन्हें 90 के दशक में दूरदर्शन की प्रस्तुति ने करा दिया। विजयगढ़ स्टेट की राजकुमारी चंद्रकांता व नौगढ़ के राजकुमार वीरेंद्र सिंह के अमर प्रेम की कहानी इसी किले में है। भगवान गणेश का मंदिर व मीरान शाह बाबा की मजार महज 700 मीटर की दूरी पर है। यहां की दीवारें इस कदर हैं कि हजारों साल बाद भी जस की तस खड़ी हैं। खास बात तो इस किले में यह कि यहां का रामसरोवर तालाब जो सैकड़ों फीट की ऊंचाई पर भी गर्मी के दिनों में भी नहीं सूखता। इसकी गहराई के बारे में आज तक कोई पता नहीं कर पाया। किले के उपरी भाग में सात तालाब मौजूद है जो कभी भी देखे जा सकते है। नौगढ़ व चुनारगढ़ जाने के लिए गुप्त रास्ता व महल का मुख्य द्वार आज भी देखा जा सकता है।
विजयगढ़ किला पहुंचे तो इसे आवश्य देखे
ऐयारों की अनसुनी कहानी व तिलस्म से भरपूर किसी किले की बात की जाती है तो विजयगढ़ किले का नाम सबसे पहले आता है। इस किले पर अगर घुमाने जाए तो यहां की कुछ अच्छी चीजें जरूर देखना चाहिए। किले के मुख्य दरवाजा जो कई कोण में घुमाया गया है। यहाँ की स्थिति यह है कि यहां अगर दो लोगों को बंदूक देकर तैनात कर दिया जाय तो कोई रास्ता नहीं जो दुर्ग में प्रवेश दिला सके सिवाय हेलीकाफ्टर के। दूसरा स्थान है रामसरोवर तालाब जो 1850 फीट की ऊंचाई पर होने के बावजूद भीषण गर्मी में नहीं सूखता। लोगों की ऐसी मान्यता है कि यह तालाब वरूणदेव का वरदानी है। इस तालाब का पानी पूर्णिमा के दिन थोड़ा ही सही पर बढ़ता जरूर है। इसके अलावा यहां के पुराने भवन जिसमें चंद्रकांता रहती थीं, इसे देखा जा सकता है।
निजी साधन से ही पहुँच सकते है
जिले के दुर्गम पहाड़ी में स्थित विजयगढ़ किले पर पहुचने के लिए कोई भी साधन नहीं है यहाँ आज भी निजी साधन से ही लोग जा सकते है। राबर्ट्सगंज नगर से आटो, कार आदि को बुक करें और विजयगढ़ दुर्ग पर पहुंच सकते हैं। इसके लिए एक तो चुर्क नगर पंचायत से होकर रास्ता जाता है दूसरा नई बाजार के से मुड़कर भी किले पर पहुंच सकते है। किले पर जाने के लिए दिन में जाए तो सही रहता है क्योकि किला जंगल में मौजूद है जहां पर जंगली जानवरों का भी खतरा बना रहता है। जिला मुख्यालय से इस किले की दुरी करीब 25 किलोमीटर है।
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