गरूण पुराण में यह हैं श्राद्ध के नियम इस तरह से मिलता है पितरों का आशीर्वाद

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हर साल पितृ पक्ष के दौरान पितरों के निमित्त श्राद्ध किया जाता है. मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान पितर धरती पर आते हैं. इस दौरान उनके परिवार के लोगों द्वारा श्राद्ध किए जाने से वे तृप्त होते हैं और परिवार को आशीर्वाद देकर जाते हैं. गरुड़ पुराण में भी पितरों के श्राद्ध को काफी महत्वपूर्ण बताया गया है. हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि जो परिजन अपने शरीर को छोड़कर जा चुके हैं, वे चाहे किसी भी लोक में हों, तर्पण से उन्हें तृप्ति प्राप्त होती है. इसके अलावा पितरों का ऋण उतारने के लिए पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म किया जाता है. पितृ पक्ष में श्राद्ध और तर्पण का विशेष महत्व माना गया है. मान्यता है कि पितृ पक्ष में हमारे पितर धरती पर आते हैं. इस दौरान उन्हें जो कुछ भी श्रद्धा के साथ अर्पि​त किया जाता है, वे खुशी से उसे ग्रहण करते हैं और आशीर्वाद देते हैं. गरुड़ पुराण के अनुसार नियम और विधि​ विधान के साथ श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होते हैं.
जानें तर्पण के नियम

जल में दूध और तिल मिलाकर तर्पण करना चाहिए. तर्पण करते समय पितृ गायत्री मंत्र पढ़ते हुए, दक्षिण की ओर मुंह करें क्योंकि दक्षिण की दिशा पितरों की मानी जाती है. इसके बाद बाएं घुटने को ज़मीन पर लगाकर, जनेऊ, गमछा दाएं कंधे पर रखकर तर्पण करना चाहिए. तर्पण के लिए चांदी, तांबे या फिर पीतल के बर्तन का इस्तेमाल करना चाहिए. स्टील के बर्तन से तर्पण नहीं करना चाहिए
अक्सर लोगों के मन में सवाल उठता है कि पितरों को अर्पित किया गया भोजन उन तक पहुंचता कैसे है. इसका भी जवाब गरुड़ पुराण में है. गरुड़ पुराण के मुताबिक विश्वदेव और अग्निश्रवा नामक दो दिव्य पितृ हैं. ये दोनों ही नाम गोत्र के सहारे अर्पित की हुई चीजों को पितरों तक पहुंचाते हैं. यदि हमारे पितर देव योनि में हों तो श्राद्ध का भोजन अमृत रूप में उन तक पहुंचता है. यदि मनुष्य योनि में हो तो अन्न रूप में उन्हें भोजन मिलता है, पशु योनि में घास के रूप में, नाग योनि में वायु रूप में और यक्ष योनि में पान रूप में भोजन उन तक पहुंचाया जाता है.

भोजन के दौरान मौन रहें
ब्राह्मण या जिसे भी श्राद्ध का भोजन कराने जा रहे हैं, उससे पहले 5 जगह एक पत्ते पर भोजन निकालें. पहला हिस्सा गाय का, दूसरा कुत्ते, तीसरा कौए, चौथा देवता और पांचवां चींटी के लिए निकालें. श्राद्ध का भोजन प्रसन्न मन से कराएं. इस दौरान एक दम मौन रहें और ब्राह्मण से ज्यादा बातचीत न करें. पूजन के बाद उनके पैर छूकर आशीर्वाद लें और यथा सामर्थ्य दक्षिणा दें. इसके बाद पूरे आदर और सम्मान के साथ उन्हें वहां से विदा करें.

इस बात का रहे ध्यान

श्राद्ध के समय सफेद पुष्पों का ही प्रयोग करें. बिल्वपत्र, मालती, चंपा, नागकेशर, कनेर, कचनार एवं लाल रंग के पुष्प का इस्तेमाल इस दौरान वर्जित बताया गया है. इसके अलावा पूजन सामग्री के रूप में दूध, गंगाजल, मधु, वस्त्र, कुश, तिल का प्रयोग जरूर करें और अभिजित मुहूर्त का ध्यान रखें.।

(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. PublicBharatNewsइसकी पुष्टी नहीं करता है.)

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