हरी अनंत हरी कथा अनंता, कहहि सुनहि बहु बिधि सब संता, कथा सुनकर भक्त हुए भाव विभोर

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अनपरा/सोनभद्र(मनोज तिवारी, गिरीश तिवारी)-पुरानी सब्जी मंडी शिवमन्दिर अनपरा बाजार में चल रहे श्री मद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के चतुर्थ दिवस की कथा में राष्ट्रीय कथावाचिका देवी सत्यार्चा जी (श्रीधाम बृंदावन) ने कहा।गजेंद्र मोक्ष की कथा का वर्णन श्रीमद भागवत पुराण में किया गया है। क्षीरसागर में दस हजार योजन ऊँचा त्रिकुट नाम का पर्वत था। उस पर्वत के घोर जंगल में बहुत-सी हथिनियों के साथ एक गजेन्द्र(हाथी) निवास करता था। वह सभी हाथियों का सरदार था। एक दिन वह उसी पर्वत पर अपनी हथिनियों के साथ बड़ी-बड़ी झाड़ियों और पेड़ों को रौंदता हुआ घूम रहा था। उसके पीछे-पीछे हाथियों के छोटे-छोटे बच्चे तथा हथिनियाँ घूम रही थी ।बड़े जोर की धुप के कारण उसे तथा उसके साथियों को प्यास लगी । तब वह अपने समूह के साथ पास के सरोवर से पाने पी कर अपनी प्यास बुझाने लगा। प्यास बुझाने के बाद वे सभी साथियों के साथ जल- स्नान कर जल- क्रीड़ा करने लगे । उसी समय एक बलवान मगरमच्छ ने उस गजराज के पैर को मुँह मे दबोच कर पाने के अंदर खीचने लगा । गजेंद्र ने अपनी पूरी शक्ति लगा कर अपने आप को छुड़ाने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हो पाया । गजेंद्र के साथ आये हुए हाथी के बच्चे और हथिनियों ने भी काफी जोर लगाया लेकिन सफल न हो सके ।जब गजेंद्र ने अपने आप को मौत के निकट पाया और कोई उपाय शेष नहीं रह गया तब उसने प्रभु की शरण ली और आर्तनाद सए प्रभु की सतुति करने लगा। जिसे सुनकर भगवान श्री हरि स्वयं आकर उसके प्राणों की रक्षा की ।पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि को वामन जयंती के मनाई जाती है. धार्मिक मान्यता है कि, इसी दिन त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने वामन अवतार में धरती पर जन्म लिया था. वामन देव का अवतार भगवान विष्णु का पांचवा अवतार माना जाता है. इससे पहले भगवान मत्स्य, कूर्म, वराह और नरसिंह अवतार में जन्म ले चुके हैं.।भगवान राम श्रीहरि भगवान विष्णु के सातवें अवतार थे। पद्म पुराण के अनुसार श्रीहरि भगवान विष्णु के धरती पर श्रीराम का अवतार लेने की अनेकों कहानिया मौजूद हैं।इस श्रष्टि में त्रिदेव यानि तीन देवों का वास है। ब्रम्हा जिन्होंने सृष्टि का निर्माण किया है, श्रीहरि भगवान विष्णु जो जगत के पालनहार हैं और भगवान शिव संगहारक हैं। इन्हीं तीन देवों के बुनियाद पर ये सृष्टि कायम है। आज हम इस लेख में आपको बताएंगे जगत के पालनहार भगवान विष्णु ने धरती पर भगवान राम का अवतार क्यों लिया। आइए जानते हैं।बेटे कंस का वध करने के लिए हुआ था. पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग में मथुरा के उग्रसेन राजा के बेटे कंस ने उन्हें सिंहासन से उतार कर कारगार में बंद कर दिया था और खुद को मथुरा का राजा घोषित कर दिया था. राजा की एक बेटी और एक बेटा था. बेटा कंस और बेटी देवकी. देवकी का विवाह वासुदेव के साथ तय कर दिया गया और बड़ी धूम-धाम के साथ वासुदेव के साथ उनका विवाह कर दिया गया. लेकिन जब कंस देवकी को हंसी-खुसी रथ से विदा कर रहा था, उस समय आकाशवाणी हुई की, देवकी का आठवां पुत्र ही कंस का वध करेगा.
आकाशवाणी सुनकर कंस की रुह कांप गई और वह घबरा गया. आकाशवाणी के बाद कंस ने बहन देवकी की हत्या करने की ठान ली. लेकिन उस दौरान वासुदेव ने कंस को समझाया कि देवकी को मारने से क्या होगा. देवकी से नहीं, बल्कि उसको देवकी की आठंवी संतान से भय है. वासुदेव ने कंस को सलाह दी कि जब हमारी आठवीं संतान होगी तो हम अपाको सौंप देंगे. आप उसे मार देना. कंस को वासुदेव की ये बात समझ आ गई. लेकिन वासुदेव और देवकी को कंस ने कारगार में कैद कर लिया.
देवकी और वासुदेव की सात संतानों को कंस मार चुका था. अब आठवां बच्चा होने वाला था. आसमान में घने बादल छाए थे, तेज बारिश हो रही थी, बिजली कड़क रही थी और भगवान श्री कृष्ण का जन्म लेने वाले थे. रात्रि ठीक 12 बजे कारगार के सारे ताले अपने आप टूट गए और कारगार की सुरक्षा में लगे सभी सैनिक गहरी नींद सो गए. उसी समय वासुदेव और देवकी के सामने भगवान श्री विष्णु प्रकट हुए और उन्हें कहा कि वे देवकी के गर्भ से आठवें पुत्र के रूप में जन्म लेंगे. इतना ही नहीं, भगवान विष्णु ने कहा कि वे उन्हें गोकुल में नंद बाबा के यहां छोड़ आएं और वहां अभी-अभी जन्मी कन्या को कंस को लाकर सौंप दें,वासुदेव ने भगवान विष्णु के बताए अनुसार ही किया. गोकुल से लाए कन्या को कंस को सौंप दिया. कंस ने जैसे ही कन्या को मारने के लिए हाथ उठाया, कन्या आकाश में गायब हो गई और आकाशवाणी हुई कि कंस जिसे मारना चाहता है वे तो गोकुल पहुंच चुका है. ये आकाशवाणी सुनकर कंस और घबरा गया. कृष्ण को मारने के लिए कंस ने बारी-बारी से की राक्षस गोकुल भेजे लेकिन कृष्ण ने सभी का वध कर दिया. आखिर में श्री कृष्ण ने कंस का भी वध कर दिया. ।श्री मद्भागवत कथा में
मुख्य यजमान अकुल्या विनोद गुप्ता रहे।कथा की ब्यवस्था में
सुमीत सोनी रविन्द्र गुप्ता, गोपाल गुप्ता, अशोक गुप्ता, संतोष गुप्ता,बाल गोपाल चौरसिया, कन्हैया गुप्ता,विपुल मोदनवाल, राजकुमार जायसवाल,सुनिल पटवा विष्णु शंकर दुबे, राजेश गुप्ता, संजय जायसवाल, अशोक केशरी, अखिलेश गुप्ता, पप्पू चौरसिया,नवीन साह राहुल गुप्ता पुरी तन्मयता से लगे रहे ।

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