प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का उद्घाटन किया। उन्होंने करीब 15 मिनट तक 1600 साल पुराने प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर का दौरा किया। इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्राचीन नालंदा यूनिवर्सिटी पहुंचे। वहां उन्होंने नालंदा यूनिवर्सिटी के नए स्वरूप को देश को समर्पित किया। आपको बता दे कि विशेष अधिनियम के तहत विश्वविद्यालय की स्थापना ऐतिहासिक नालंदा महाविहार से 20 किलोमीटर से भी कम दूरी पर मौजूद प्राचीन मगध के शिक्षा केंद्र को पुनर्जीवित करने का फैसला मूल रूप से 2010 में शुरू हुआ था। विश्वविद्यालय को संसद द्वारा पारित एक विशेष अधिनियम, नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम के तहत स्थापित किया गया है। यूनिवर्सिटी लॉन्च किए जाने से तीन साल पहले साल 2007 में यूनिवर्सिटी के गठन का मार्गदर्शन करने के लिए एक सलाहकार समूह बनाया गया था। अर्थशास्त्री व नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर अमर्त्य सेन इसके अध्यक्ष थे। बाद में सेन को विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया। 1 सितंबर 2014 से एक अंडर कंस्ट्रक्शन बिल्डिंग में स्कूल ऑफ इकोलॉजी एंड एनवायर्नमेंट और स्कूल ऑफ हिस्टोरिकल स्टडीज की क्लासेज शुरू हो गई थी। उस वक्त 15 स्टूडेंट्स ने एडमिशन लिया था। जिनके लिए 11 टीचर्स अपॉइंट किए गए थे। उद्घाटन में पीएम के साथ विदेश मंत्री एस जयशंकर, बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी नालंदा में मौजूद हैं। कई देशों के राजदूत, केंद्र और राज्य सरकार के कई मंत्री भी नालंदा पहुंचे थे।
17 देशों के 400 स्टूडेंट्स यहां पढ़ाई कर रहे हैं
बिहार के इस समय विश्वविद्यालय में कुल 17 देश के 400 स्टूडेंट पढ़ाई कर रहे हैं। वहीं, डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स के लिए यहां 10 सब्जेक्ट में पढ़ाई हो रही है। कैंपस में एशिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी भी बनाई जा रही है।
बी.वी. दोशी ने किया है डिजाइन
नालंदा विश्वविद्यालय को प्रसिद्ध वास्तुकार पद्म विभूषण स्वर्गीय बी.वी. दोशी ने डिजाइन किया है। इसके बुनियादी ढांचे को नेट जीरो यानी शून्य कार्बन उत्सर्जन वाले कैंपस के रूप में बनाया गया है। 1190 के दशक में बख्तियार खिलजी ने जलाकर खत्म कर दिया। 1193 ई. में तुर्की शासक कुतुबुद्दीन ऐबक के सेनापति बख्तियार खिलजी के नेतृत्व में आक्रमणकारियों की सैन्य टुकड़ी ने विश्वविद्यालय को जलाकर खत्म कर दिया। नालंदा यूनिवर्सिटी का परिसर इतना विशाल था कि कहा जाता है कि हमलावरों के आग लगाने के बाद परिसर तीन महीने तक जलता रहा। आज नजर आने वाली 23 हेक्टेयर की साइट मूल यूनिवर्सिटी कैंपस का एक हिस्सा भर है।
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