➡️ सोनभद्र में हो रही अंधाधुंध ब्लास्टिंग से जल स्रोत सूखने की कगार पर, जीवन रेखा पर मंडराया संकट
सोनभद्र: (अरविंद दुबे,गिरीश तिवारी)– खनिजों से भरपूर यह जनपद अब खदानों की अंधाधुंध ब्लास्टिंग के कारण एक नए संकट की चपेट में है। जहां पहले पानी के स्रोत जीवनदायिनी नदियों और कुओं से भरे रहते थे, वहां अब सूखापन और दरारें उभर आई हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, लगातार हो रही हैवी ब्लास्टिंग ने भूगर्भीय परतों को इस कदर क्षतिग्रस्त किया है कि जलधारण क्षमता कमजोर हो गई है।
गांवों में सूखने लगे हैं कुएं और हैंडपंप
ओबरा, डाला क्षेत्रों के ग्रामीणों का कहना है कि पहले जहां 20 फीट पर पानी मिल जाता था, अब 60-70 फीट तक खुदाई के बाद भी पानी नहीं निकलता।पुराने कुएं पूरी तरह सूख चुके हैं, हैंडपंपों से सिर्फ हवा निकलती है।टैंकर से पानी मंगवाना अब आम बात हो गई है।
कैसे हो रहा है जल स्तर प्रभावित?
खदानों में किए जा रहे विस्फोटों से ज़मीन की परतें दरक रही हैं जलस्तर को बनाए रखने वाली भूगर्भीय परतों में दरारें आने से पानी रिस कर बह रहा है या गहराई में चला जा रहा है।जलभराव की प्राकृतिक क्षमता कमजोर हो रही है।
प्रशासन की चुप्पी और ग्रामीणों की बेबसी
ग्रामीण लगातार ब्लास्टिंग की शिकायत कर रहे हैं, लेकिन खनन कर्ताओं को अभी भी खुली छूट मिली हुई है। न तो ब्लास्टिंग की सीमा तय है, न कोई प्रभाव आकलन किया गया है। गांव वाले पूछते हैं — “विकास किसके लिए? जब पीने को पानी नहीं होगा तो बाकी सब किस काम का?सोनभद्र की धरती के नीचे खनिज तो हैं, पर उसके ऊपर जीवन है — और जीवन का मूल है ‘पानी’। खदानों के लाभ के पीछे छिपता यह जल संकट एक ऐसा विस्फोट बन सकता है, जो आने वाले वक्त में पूरे क्षेत्र की नींव हिला देगा।
विकास की कीमत?
सवाल यही है – क्या विकास की कीमत इतनी भारी होनी चाहिए कि लोग अपनी प्यास बुझाने के लिए धरती को कोसने लगें? सोनभद्र की यह कहानी सिर्फ एक जिले की नहीं, एक चेतावनी है – अगर समय रहते नहीं चेते तो जल ही नहीं, जीवन भी सूख जाएगा।
प्रशासन मौन, समाधान दूर
स्थानीय प्रशासन का दावा है कि पानी के लिए टैंकर भेजे जा रहे हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि टैंकर भी कई गांवों तक नहीं पहुंच पा रहे। लोग खुद ही जुगाड़ से जीवन चला रहे हैं।
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