AKD/गिरीश तिवारी
सोनभद्र। जिस जन औषधि केंद्र को गरीबों की दवा, मजदूरों की राहत और आदिवासियों की उम्मीद कहा गया था, वही केंद्र आज गरीब मरीजों की जेब काटने का संगठित अड्डा बन चुका है। सरकार की जन औषधि योजना का उद्देश्य था इलाज सस्ता हो, दवाएं सुलभ हों और मजबूर इंसान कर्ज या महंगाई के बोझ तले न दबे। लेकिन सोनभद्र मेडिकल कॉलेज का जन औषधि केंद्र इस मंशा को खुलेआम ठेंगा दिखा रहा है। यहां जन औषधि के नाम पर तीन से चार गुना महंगी बाहरी ब्रांडेड दवाएं बेची जा रही हैं। न पैकेट पर जन औषधि की मुहर, न दामों में कोई राहत फिर भी मरीजों को मजबूरी में वही दवाएं थमाई जा रही हैं। सवाल सीधा है अगर यही करना था, तो जन औषधि केंद्र खोलने का ढोंग क्यों?
गरीब जिले में महंगे इलाज का खेल
सोनभद्र। आदिवासी बहुल और अति पिछड़ा सोनभद्र जिला आज भी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए जूझ रहा है। सरकार ने बड़ी उम्मीदों के साथ लोढ़ी स्थित जिला अस्पताल को मेडिकल कॉलेज में बदला। विशेषज्ञ डॉक्टर आए, मरीजों की संख्या बढ़ी। इसके साथ ही एल-2 भवन में जन औषधि केंद्र खोला गया, ताकि अस्पताल में न मिलने वाली दवाएं यहां कम कीमत पर मिल सकें। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि जन औषधि केंद्र अब जन विरोधी केंद्र बन चुका है। दर्द निवारक दवाएं हों, एंटीबायोटिक हों, हड्डी रोग से जुड़ी सामग्री हो या ऑपरेशन में इस्तेमाल होने वाले उपकरण सब कुछ बाजार भाव से भी महंगा बेचा जा रहा है। जन औषधि की सस्ती दवाएं या तो उपलब्ध नहीं होतीं, या फिर मरीजों को जानबूझकर दिखाई ही नहीं जातीं।

मरीजों की मजबूरी, लूट का हथियार
सोनभद्र। इस खेल का सबसे घिनौना पहलू यह है कि मरीजों की मजबूरी को हथियार बनाया जा रहा है। इलाज के बीच अगर दवा न मिले, तो जान जोखिम में पड़ सकती है यही डर दिखाकर मरीजों को महंगी दवाएं खरीदने को मजबूर किया जा रहा है। कोन के बिराजू कहते हैं “हम लोग जन औषधि का नाम सुनकर आए थे। लगा था सस्ती दवा मिलेगी। लेकिन यहां तो बाहर की दुकानों से भी महंगी दवाएं दी जा रही हैं। दवा पर जन औषधि तक नहीं लिखा है, फिर भी लेना पड़ता है। “डॉक्टर ने कहा था जन औषधि से ले लो, सस्ती पड़ेगी। लेकिन यहां चार गुना महंगी दवा थमा दी गई। अगर नहीं लेते तो इलाज रुक जाता। मजबूरी में खरीदनी पड़ी।” ये सिर्फ दो नहीं बल्कि ऐसे सैकड़ों मरीज रोज इस व्यवस्थित लूट का शिकार हो रहे हैं।
ड्रग इंस्पेक्टर की कुर्सी सो रही है
सोनभद्र। जन औषधि केंद्र की निगरानी की जिम्मेदारी औषधि प्रशासन यानी ड्रग इंस्पेक्टर की होती है। लेकिन सोनभद्र में यह जिम्मेदारी सिर्फ फाइलों तक सीमित है। नियमित निरीक्षण नहीं होता, बिलों की जांच नहीं होती, स्टॉक का सत्यापन नहीं होता। केंद्र के एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया “यहां अगर सही तरीके से जांच हो जाए, तो आधी दवाएं तुरंत बाहर हो जाएं। लेकिन जांच ही नहीं होती। सब जानते हैं, फिर भी चुप्पी है। यह चुप्पी साधारण नहीं, संरक्षित लापरवाही की ओर इशारा करती है।

मेडिकल कॉलेज प्रशासन की रहस्यमयी खामोशी
सोनभद्र। सबसे बड़ा सवाल मेडिकल कॉलेज प्रशासन पर उठता है। मरीजों की शिकायतें बढ़ रही हैं, लेकिन न कोई जांच बैठती है, न कोई नोटिस जारी होता है, न ही जन औषधि केंद्र के संचालन पर सवाल उठते हैं। क्या प्रशासन को यह सब दिख नहीं रहा? या फिर सब कुछ देखकर भी देखने का नाटक किया जा रहा है? अगर जन औषधि केंद्र अस्पताल परिसर में है, तो उसकी जवाबदेही किसकी है? क्या गरीब मरीजों की जेब कटती रहे और प्रशासन मूकदर्शक बना रहे यही व्यवस्था है?
सरकारी योजना की साख पर करारा तमाचा
सोनभद्र। प्रधानमंत्री जन औषधि योजना देश की सबसे महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य योजनाओं में से एक है। इसका मकसद है गरीब को सस्ती दवा, आम आदमी को राहत। लेकिन सोनभद्र का यह जन औषधि केंद्र योजना की आत्मा के साथ खुला विश्वासघात कर रहा है। अगर समय रहते सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो लोगों का भरोसा न सिर्फ इस केंद्र से, बल्कि पूरी जन औषधि योजना से उठ जाएगा।
अब सवाल, जवाब और कार्रवाई जरूरी
सोनभद्र। अब सवाल यह नहीं कि गड़बड़ी हो रही है या नहीं सवाल यह है कि कब तक होगी और कौन जिम्मेदार है? क्या ड्रग इंस्पेक्टर जांच करेंगे? क्या मेडिकल कॉलेज प्रशासन जवाब देगा? क्या गरीब मरीजों को उनका हक मिलेगा? या फिर जन औषधि केंद्र यूं ही महंगी दवाओं का अड्डा बना रहेगा? सोनभद्र की जनता जवाब चाहती है और जवाब अब सिर्फ बयान से नहीं, सख्त कार्रवाई से चाहिए।
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